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आयुर्वैदिक मेडिसिन

आयुर्वेद एक सदियों पुरानी उपचार प्रणाली है । यह करीब 5000 साल पुरानी चिकित्सा विज्ञान है  इतनी पुरानी होने के बावजूद आज भी आधुनिक जीवन में यह हमें हमारी जीवन शैली को सही तरीके से जीने का तरीका सिखाती है जिसे अपनाकर हम रोग मुक्त , तनाव मुक्त,सुखी  जीवन व्यतीत कर सकते हैं । एलोपैथी दवाइयां बाजार में आने के बाद भी आयुर्वेद ने अपनी पकड़ कम नहीं की । इसमें जड़ी बूटियां ,प्राकृतिक फल ,फूलों का रस, अर्क , पत्तियां,फूल पौधों का उपयोग किया जाता है ।जिसके द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियों को आयुर्वेदिक उपचार प्रणाली द्वारा ठीक किया जाता है यह आयुर (जीवन)और वेद (ज्ञान) शब्द से मिलकर बना है जो की संस्कृत का एक शब्द है जिसका  मतलब जीवन का विज्ञान है जिससे साफ शब्दों में आयुर्वेद का मतलब समझा जा सकता है। यह दुनिया की सबसे प्राचीन उपचार प्रणालियों में से एक है इसके द्वारा समस्या का निदान जड़ से किया जाता है । आज के समय में आयुर्वेद फिर से बहुत लोकप्रिय हो रहा है।


आयुर्वेद का इतिहास

आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली का इतिहास 5000 वर्षों से भी अधिक पुराना माना जाता है इसके विषय में हमारे धर्म ग्रंथो में भी कहा गया है ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में आयुर्वेद अपनी ऊंचाइयों पर था इसकी खोज भारत जैसे महान देश में ही हुई थी यह भारत के महान ऋषि मुनियो की देन है । इस चिकित्सा पद्धति को हजारों वर्षों पहले ही हमारे वेद और पुराणों में लिखा गया था । इस चिकित्सा प्रणाली में पंचकर्म द्वारा बीमारियों का उपचार किया जाता है जिसमें पांच क्रियाएं शामिल होती हैं योग ,एक्युपंचर ,हर्बल चिकित्सा ,मालिश ,और अन्य प्रकार से उपचार किया जाता है । इसमें व्यक्ति के तन के साथ-साथ मन की शुद्धि पर भी ध्यान दिया जाता है उसे सही तरीके से जीवन शैली को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।।


आयुर्वेद का अवतरण 

आयुर्वेद के अवतरण के बारे में अलग-अलग अवधारणाएं हैं। बहुत से धार्मिक वेदों और पुस्तकों में इसके बारे में अलग-अलग बातें कही गई है। ऋषि सुश्रुत के मत अनुसार आयुर्वेद की उत्पत्ति भगवान  धनवंतरी के द्वारा हुई है फिर उनके बाद अन्य महाऋषियों के साथ धीरे-धीरे पीढ़ी दर पीढ़ी समाज में इसका प्रचलन हुआ।

ऋषि चरक मतानुसार आयुर्वेद का ज्ञान सबसे पहले ब्रह्मा जी से प्रजापति , प्रजापति द्वारा अश्विनी कुमार को फिर उनसे इंद्र ने इस ज्ञान को प्राप्त किया और इंद्र ने भारद्वाज को यह ज्ञान दिया । इस बात को शत प्रतिशत दावे के साथ कहना की आयुर्वेद की उत्पत्ति कहां ,कब और कैसे हुई काफी मुश्किल है परंतु यह हमारे समाज और हमारे कल्याण के लिए ईश्वर की देन है जिसके द्वारा हम अपने जीवन को सुखपूर्वक व्यक्ति कर सकते है ।


वेदों में आयुर्वेद का महत्व

भारत जैसे महान देश के स्वर्णिम इतिहास में आयुर्वेद का एक अलग ही महत्व है ।हमारे देश में चार पवित्र वेद माने जाते हैं ( ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद तथा अर्थवेद ) इन सभी वेदों में आयुर्वेद का बड़ी ही खूबसूरती से विवरण किया गया है । यूं  तो सभी वेदों में आयुर्वेद के उपचार की विस्तृत जानकारी दी गई है ।इसमें  आयुर्वेद का उद्देश्य , वैध के गुण , कर्म , विभिन्न प्रकार की औषधियों के लाभ , शरीर के अंगों और उनकी संरचना ,शल्य चिकित्सा ,अग्नि चिकित्सा ,सूर्य चिकित्सा ,जल चिकित्सा ,प्राण चिकित्सा ,वशीकरण ,विश चिकित्सा ,अग्नि चिकित्सा आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है । इन सभी वेदों में अथर्ववेद को आयुर्वेद की आत्मा कहा गया है । अथर्ववेद में आयुर्वेद का अलग ही स्थान है जो की चिकित्सा की दृष्टि से सर्वोपरि माना गया है । अथर्व वेद में यूं तो आयुर्वेद की संपूर्ण जानकारी मिलती है परंतु इसमें आयुर्वेद को मंत्रों से भी जोड़ा गया है ।औषधीयो के साथ-साथ इसमें चिकित्सा के लिए मंत्रों का भी सहारा लिया जाता है । इसमें व्यक्ति को अपने मंगल के लिए बलिदान ,उपवास ,नियम ,होम , जप,प्रायश्चित आदि के द्वारा भी रोग मुक्त किया जाता है।


 आयुर्वैदिक मेडिसिंस कैसे काम करती हैं ।

आयुर्वैदिक मेडिसिंस बीमारी को ठीक करने के साथ-साथ  रोग की उत्पत्ति की जड़ पर भी काम करती है ।ऐसा माना जाता है कि मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है । जल,वायु,पृथ्वी,अग्नि और आकाश। मनुष्य को स्वस्थ रखने के लिए वात, पित्त और कफ का संतुलन होना बहुत जरूरी है यदि इनका संतुलन बिगड़ जाए तो व्यक्ति किसी रोग भी की चपेट में आसानी से आ सकता है । आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में संतुलित आहार लेना संतुलित जीवन जीना काफी मुश्किल हो गया है परंतु आयुर्वैदिक मेडिसिंस और जीवन शैली शरीर में  वात ,पित्त और कफ को संतुलित बनाए रखने का कार्य करती है और रोगी धीरे-धीरे रोग मुक्त हो जाता है। आयुर्वेदिक उपचार लेने के दौरान रोगी को काफी सब्र और संयम बरतने की जरूरत होती है क्योंकि यह दवाइयां धीरे-धीरे अपना असर दिखाती हैं और व्यक्ति को रोग मुक्त होने में थोड़ा  लंबा समय भी लग सकता है ।


 आयुर्वैदिक मेडिसिंस के लाभ

  • आयुर्वैदिक मेडिसिंस में प्राकृतिक रूप से जड़ी बूटियो, रस, तेल और मसालों का प्रयोग किया जाता है ।

  • आयुर्वेदिक चिकित्सा एलोपैथिक चिकित्सा के मुकाबले कम खर्चीली होती है।

  • आयुर्वैदिक मेडिसिंस के साइड इफेक्ट ना के बराबर होते हैं।

  • यह रोगी के प्रति रक्षा प्रणाली पर काम करता है तथा उसे बेहतर बनाने में मददगार होता है।

  • यह दवाइयां रोग की जड़ पर भी काम करती है ।

  • आयुर्वैदिक मेडिसिंस प्राकृतिक तरीके से पाचन को दुरुस्त करती हैं

  • आयुर्वैदिक मेडिसिंस प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक संरचना के अनुसार कार्य करती है।

  • आयुर्वैदिक मेडिसिंस पूर्ण रूप से हर्बल होती है इसीलिए इन्हें लंबे समय तक लिए जाने पर भी कोई दुष्प्रभाव कम ही देखने को मिलता ।


आयुर्वैदिक मेडिसिंस के नुकसान

यूं तो देखा गया है की आयुर्वेदिक मेडिसिंस के कोई नुकसान या साइड इफेक्ट्स नहीं होते परंतु हर सिक्के के दो पहलू होते हैं आईए जानते हैं कुछ ऐसी चीजें जो आयुर्वैदिक मेडिसिंस के नुकसान के रूप में देखी जा सकती हैं

  • इन दवाइयां पर लोग आसानी से विश्वास नहीं कर पाते।

  • इन दवाइयां का असर जल्दी नहीं होता।

  • किसी भी रोग की मुक्ति के लिए इन दवाइयां को लंबे समय तक लेना पड़ सकता है ।

  • आयुर्वेदिक दवाइयों का सेवन बच्चों ,गर्भवती महिलाओं , या स्तनपान करवाने वाली महिलाओं को वैध या चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए ।

  • यदि आयुर्वैदिक मेडिसिंस में किसी तरह की मिलावट की गई है तो वह नुकसानदायक हो सकती है।

  • आयुर्वेदिक दवाइयां कभी-कभी काफी लंबा समय लेती है रोग को ठीक करने में जिससे रोगी का मनोबल टूट जाता है और वह इलाज बीच में ही छोड़ देता है।




प्र1 क्या आयुर्वैदिक मेडिसिंस के भी कुछ नुकसान या साइड इफेक्ट्स होते हैं? 

उ. यूं तो आयुर्वैदिक मेडिसिंस खाने के हमारे शरीर पर कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होते परंतु आयुर्वेदिक मेडिसिंस बीमारी को सही करने में लंबा वक्त ले सकती है । यह वक्त एक हफ्ते से एक साल भी हो सकता है । इसमें आधुनिक टेस्ट और ऑपरेशंस की सुविधा उपलब्ध नहीं है । कभी-कभी कुछ जड़ी बूटियां आसानी से उपलब्ध नहीं होती या फिर बहुत ही ज्यादा महंगी होती है ।


प्र 2 क्या आयुर्वैदिक मेडिसिंस साल के किसी भी समय खाई जा सकती हैं ?

 जी हां आयुर्वैदिक मेडिसिंस साल के किसी भी समय खाई जा  सकती है यदि आप किसी भी तरह की बीमारी से जूझ रहे हैं तो आप इन दवाईयों को आयुर्वैदिक डॉक्टर या वैद्य की सलाह से किसी भी वक्त लेना शुरू कर सकते हैं ।


प्र 3 कोरोना के बाद अचानक लोग एलोपैथी छोड़कर आयुर्वेद की तरफ रुख क्यों कर रहे हैं?

 यह बात हम सभी जानते हैं कि कोरोना के बाद पूरी दुनिया में सेहत को लेकर लोगों का नजरिया बदला है ।हर व्यक्ति अपनी इम्यूनिटी बढ़ाना चाहता है ताकि वह किसी भी तरह की बीमारी से अपने आप को सुरक्षित रख सके 

 । आयुर्वेद हमारे जीवन शैली पर आधारित है इसमें अपने जीवन शैली में कुछ बदलाव करके हम सुरक्षित और स्वस्थ रह सकते हैं। इसमें बहुत सी ऐसी जड़ी बूटियां है जो हमारे 

 शरीर की सुरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने का काम करती है और हमें स्वस्थ रहने में मदद करती है बहुत सी चीज तो हमारे रसोई घर में भी आसानी से मिल जाती है जिनका प्रतिदिन सही तरीके से सेवन करके हम अपने आप को बेहतर बना सकते हैं और इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता । 


प्र 4 क्या एक स्वस्थ व्यक्ति भी आयुर्वेद को अपने जीवन में अपना कर रोग मुक्त तनाव मुक्त और सुखी जीवन जी सकता है?

जी हां!आयुर्वेद की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे सिर्फ एक रोग ग्रस्त व्यक्ति ही नहीं बल्कि पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति भी  अपनी जीवन शैली में कुछ बदलाव करके पूर्ण रूप से रोग मुक्त ,तनाव मुक्त और सुखी जीवन जी सकता है ।


प्र 5 क्या आयुर्वैदिक मेडिसिंस का प्रभाव भी एलोपैथिक मेडिसिंस की तरह तुरंत शुरू हो जाता है?

जी नहीं ! कोई भी आयुर्वैदिक मेडिसिंन तुरंत असर नहीं करती ।यह रोग को जड़ से खत्म करती है और शरीर की उन कमजोरीयो को दूर करने का काम करती हैं जिनकी वजह से हमें किसी भी तकलीफ का सामना करना पड़ता है ।  यह हमारे शरीर के इम्यूनिटी को बढ़ाकर हमें लंबे समय के लिए स्वस्थ रखने का काम करती है ।


प्र 6 किसी भी रोग को ठीक करने या जड़ से खत्म करने के लिए आयुर्वेदिक मेडिसिंस कितना समय लगाती है ?

आयुर्वेद एक सुरक्षित चिकित्सा प्रणाली है जिसके कोई साइड इफेक्ट्स देखने को नहीं मिलते परंतु यह किसी रोग को ठीक करने या जड़ से खत्म करने में एक महीने से लेकर 1 साल तक का समय भी लगा सकती है ।ऐसा माना जाता है कि आयुर्वेद के हिसाब से हर व्यक्ति का शरीर अलग तरह से कार्य करता है जिसे समझ कर ही आयुर्वेदिक इलाज किया जाता है यह व्यक्ति के शरीर को अंदर से ठीक करके रोग को पूर्ण रूप से ठीक करने में मदद करता है इसीलिए आयुर्वेदिक उपचार थोड़ा लंबा हो सकता है ।


प्र 7 आयुर्वेद में पंचकर्म का क्या महत्व है ?

आयुर्वेदिक चिकित्सा में पंचकर्म एक बेहद महत्वपूर्ण प्रक्रिया है (वामन, विरेचन ,वस्ति ,नस्य और रक्तमोक्षण ) यह शरीर के शुद्धिकरण के साथ-साथ  विशहरण का कार्य भी करते है यानी यह हमारे शरीर से टॉक्सिंस को बाहर निकालती है जो अक्सर किसी भी रोग का मूल कारण बनते हैं । इस प्रक्रिया में पांच तरीके से हमारे शरीर पर कार्य किया जाता है। इस तरह हमारे शरीर में यह संतुलन बनाने का कार्य करती है और हमें रोग मुक्त होने में मदद करती है ।


प्र 8 आयुर्वेदिक उपचार करते वक्त किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उ आयुर्वेदिक उपचार कराते वक्त खट्टा खाने से परहेज करना चाहिए ।ऐसा माना जाता है कि खट्टा खाने से हमारे शरीर का पीएच लेवल असंतुलित हो जाता है जिसके कारण उम्मीद के अनुसार परिणाम आने में देरी हो जाती है ,हो सके तो घी ,तेल ,मसालेदार खाने से कुछ समय के लिए दूरी बनाए रखें।


प्र 9 आयुर्वेद के अनुसार सबसे शक्तिशाली दवा कौन सी है ?

उ आयुर्वेद के अनुसार सबसे शक्तिशाली दवा  अश्वगंधा को माना जाता है इसके अलावा शतावरी,त्रिफला ,गोक्षुरा ,विदारीकंद आदि शामिल है । यह सारी जड़ी बूटियां व्यक्ति के शरीर में ताकत और स्फूर्ति पैदा करते हैं।


प्र 10 रसोई घर में पाई जाने वाली घरेलू आयुर्वेदिक औषधियां कौन सी है?

उ भारतीय घरों में कुछ ऐसे मसाले प्राय सभी रसोई घरों में मिल जाते हैं जिनको हम आयुर्वैदिक मेडिसिंस के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे हल्दी, काली मिर्च ,जायफल,  अजवाइन ,मेथी के बीज ,लॉन्ग ,अदरक इत्यादि ।

निष्कर्ष

आयुर्वेद सदियों से हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है इसमें रोगी और रोग के लक्षणों का उपचार पेड़ पौधों ,जड़ी बूटियां,फल -फूल ,रस,तेल , मसालों आदि द्वारा किया जाता है ।जिसके कारण यह काफी सेफ माना जाता है ।कोरोना काल के बाद अचानक आयुर्वेद ने काफी लोकप्रियता हासिल की ,आयुर्वेद में बताए गए घरेलू नुस्खे और उपचारों से कोरोना काल में लोगों ने अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने में काफी मदद ली ,परंतु फिर भी हमें किसी भी रोग के उपचार के लिए किसी अच्छे आयुर्वेदिक डॉक्टर या वैध  की सलाह से ही  दवाइयां लेनी चाहिए। कभी-कभी आयुर्वैदिक मेडिसिंस रोग को ठीक करने में काफी लंबा समय लगाती है जिससे रोगी का मनोबल टूट सकता है और वह यह उपचार बीच में ही छोड़ सकता है।


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